सार
- देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या 90,000 के पार
- लॉकडाउन से देश के सामाजिक-आर्थिक पहलू पर असर
विस्तार
कोरोना वायरस पर काबू पाने के लिए दुनिया के कई देशों ने लॉकडाउन का रुख अपनाया था। भारत में भी लॉकडाउन की अवधि लगातार तीन बार बढ़ी है और 50 दिन से ज्यादा लोग घरों में बंद रहे हैं। तीसरे चरण के बद भी कोरोना के संक्रमितों की मरीजों की संख्या रुकने का नाम नहीं ले रही है।कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ने के बाद भी कुछ लोग ऐसे हैं जो सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों को दोबारा खोलने के पक्ष में हैं। देश में अब तक कोरोना से संक्रमितों की संख्या 90,000 के पार चली गई है और 2,872 लोगों की इस खतरनाक वायरस से मौत हो गई है।
लॉकडाउन की वजह से देश की अर्थव्यवस्था पर भी गहरा असर पड़ा है। कई क्षेत्रों में बेरोजगारी के आंकड़ें बढ़ रहे हैं तो कहीं वित्तीय साधनों में कमी आ रही है। मजदूरों का बड़ी संख्या में पलायन करना और सड़कों या दूसरे राज्यों में प्रवासियों का फंसे रहना सामाजिक-आर्थिक हालात की जानकारी दे रहे हैं।
अब सवाल ये उठता है कि क्या यह महामारी कभी खत्म होगी, हालांकि इसका कोई सटीक उत्तर नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इसके कभी ना जाने की संभावना जताई है। संगठन का कहना है कि लोगों को कोरोना के साथ जीना सीखना होगा।
कोरोना के साथ जीने के लिए हमें जिम्मेदार और अनुशासन में रहना सीखना होगा। हालांकि इससे हमारी निजी जिंदगी में कई तरह के बदलाव आ सकते हैं लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग, साफ-सफाई, मास्क का इस्तेमाल करना जैसे कामों को नियमित रूप से करना होगा।
इसके अलावा सरकार, समाज और हमारे स्वास्थ्य संगठनों को और ज्यादा जिम्मेदारी के साथ काम करना होगा। लॉकडाउन को बरकरार रखना और खत्म कर देना, ये दोनों ही एक बहस का मुद्दा हो सकते हैं लेकिन सवाल यह है कि लॉकडाउन में छूट देने में और क्या बदलाव किए जा सकते हैं।
लोगों की स्वास्थ्य सुरक्षा की गणना किए बिना अगर लॉकडाउन में सख्ती कम की जाएगी और नर्मी बरती जाएगी तो यह सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण काम हो सकता है। लेकिन कोविड-19 प्रबंध के लिए एक बेंचमार्क बनाकर काम किया जा सकता है।
सामाजिक आर्थिक जरूरतों और स्वास्थ्य सेवाओं के बीच तालमेल बैठाकर सरकार एक सकारात्मक कदम उठा सकती है। भारत सरकार पहले ही राज्यों के जिलों को ऑरेन्ज, रेड और ग्रीन जोन में बांटा हुआ है। राज्य सरकारें केंद्र सरकार की ओर से दिए गए निर्देशों का पालन करती हैं।
राज्य सरकारों को इतनी अनुमति है कि वो अपने यहां सख्ती कर सकती हैं लेकिन अगर केंद्र सरकार ने जो सख्ती लगाई है उसमें ढील नहीं दी सकती। अगर लॉकडाउन में छूट देने से समस्याएं कम हो जाएंगी तो पहले केंद्र सरकार को समस्याओं को वर्गीकृत करना होगा जो कुछ इस तरह हो सकती है...
- क्या पिछले 14 दिनों में उन अस्पतालों में लगातार गिरावट आई है जहां कोरोना संक्रमित के मरीज भर्ती है
- क्या पिछले 14 दिनों में कोरोना से मरने वाले मरीजों की संख्या में गिरावट देखने को मिली है
- क्या दाह संस्कारों से होने वाली मौतों में इजाफा हुआ है
- क्या पिछले 14 दिनों में किसी शहर के दूसरे इलाकों में नए कोरोना के मरीज मिले हैं
- क्या इस दौरान न्यूनतम 40 फीसद की क्षमता के साथ आईसीयू या अस्पताल के बिस्तर उपलब्ध हैं
- क्या छूट देने पर आईएलआई या एसएआरआई जैसे मामलों में बढ़ोतरी देखने को मिली
- क्या देश बने बनाए पर्याप्त क्वारंटीन केंद्र हैं
- क्या स्वास्थ्य कर्मियों, पुलिस प्रशासन और आम जनता के लिए पीपीई किट और सुरक्षा के उपकरण हैं
ऊपर दिए सभी मापदंडों का बेंचमार्क बनाकर एक डायनैमिक नीति बनाई जा सकती है, जिसमें शहर में कोरोना मरीजों की संख्या के आधार पर लॉकडाउन के बढ़ाने और घटाने को लेकर फैसला लिया जा सकता है।
कोरोना से लड़ने में सबसे ज्यादा मददगार मास्क, सैनिटाइजर, हाथ धोना और ज्यादा से ज्यादा जागरुकता वाले कैंपन रहेंगे। भविष्य में हमें कोरोन को ध्यान में रखते हुए दूरी का हमेशा ध्यान रखना होगा।
0 Comments